DARAREIN…

काश हर दरार, हर निशान अपनी दास्तां बता पाते

अपनी कहानी को अपने शब्दो में बया कर पाते

बता पाते की ज़रूरी नहीं

वो किसी हादसे का शिकार थें

के हर बार उसका वजूद किसी दुर्घटना से नहीं होता

के कभी कभी वह बच्चों की मासूमियत को,

उनकी शरारतों को संजोए रखती हैं

भरोसा नही तुम्हें, तो पूछ लो उन खाली घर की दीवारों को

 उन मकानों के टूटे कांच को 

या उन अधेड़ उम्र की आंखों को

जो आज भी इन दरारों में अपना बीता हुआ कल बिताती है,

अपनी यादें सांझा करती है,

किसी के लौट आने की आस लगती है

काश यह दरारें, यह निशान अपनी कहानी बया कर पाते

अपनी बेगुनाही साबित कर पाते

शायद यह भी तुमसे आशा करते होंगे

की तिरस्कार छोड़, तुम खुशी से इनका स्वागत करो,

अपनी यादों के सफर में

काश ये दरारें, ये निशान कुछ कह पाते

अपनी दास्तां तुम्हें सुना पाते।

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